भारत को दूसरे देशों से सीखना होगा कुपोषण दूर करने का तरीका

भारत को दूसरे देशों से सीखना होगा कुपोषण दूर करने का तरीका

कुपोषण से जंग में मिड डे मील जैसी योजनाओं को ज्‍यादा प्रभावी बनाने की जरूरत है। फोटो साभार: लाइव मिंट 

नरजिस हुसैन

हाल में जारी हुई ग्लोबल हंगर इंडेक्स (एचडीआई) की रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि ये आकंड़ा पहली बार सामने आया हो। इस साल कुपोषण पर जो भी रिपोर्ट, चाहे वो विश्व स्वास्‍थ्‍य संगठन या युनीसेफ की हो, सभी का देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण का आंकड़ा कमोबेश एक जैसा ही है। नीति आयोग के सलाहकार आलोक सिंह के मुताबिक देश में सिर्फ 6-24 महीने के 9 फीसद बच्चों को ही सही मायनों में पोषण मिल रहा है। 

खाद्य सुरक्षा के बाद देश में भुखमरी तो काफी हद तक कम हुई है लेकिन, कुपोषण से पोषण का सफर सरकार को अभी और तय करना है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़े बताते है कि देश में पांच साल से कम आयु के 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं, 21 फीसदी का वजन और लंबाई दोनों कम है और 38.4 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उम्र के मुताबिक कम है। ये कुपोषित बच्चे बड़ी आसानी से बीमारियों का शिकार होते हैं। इनके कमजोर शरीर में रोगों से लड़ने की ताकत नहीं होती है।    

सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कुपोषण खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पूरी दुनिया में अगर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि दुनियाभर में 2017 में 821 मिलियन (82 करोड़ दस लाख) लोग कुपोषित हैं जो 2016 में 804 मिलियन (80 करोड़ चार लाख) थे। अलग-अलग रिपोर्ट एक राय होकर यह बात रखती हैं कि जलवायु परिवर्तन, हिंसा और आर्थिक मंदी तेजी से बढ़ती भुखमरी के लिए जिम्मेदार हैं। 

युनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन का एक शोध (Global Burden of Disease) ये बताता है कि भारत में 2017 में ज्यादातर मौतें और विकलांगता कुपोषण की वजह से ही हुईं। हालांकि, 2016 में 61 फीसदी लोग गैर-संक्रामक बीमारियों यानी Non-Communicable Diseases से मरे। सरकार ने 2018 में पोषण अभियान शुरू किया जिसका मकसद औरतों और बच्चों में कुपोषण को खत्म करना था और जो वाकई काफी कारगर सरकारी योजना है। लेकिन, 2025 तक हर तरह के कुपोषण को खत्म करना और 2030 तक जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को अपनी कोशिशों में और तेजी लानी होगी। यही नहीं बल्कि उसे दूसरे देशों से भी जरूरी सीख लेनी होगी।   

दुनिया के कई देशों ने अपनी नीतियों, कृषि शोध और आर्थिक सुधारों के दम पर कुपोषण को कम किया। चीन, ब्राजील, इथोपिया और बांग्लादेश इन देशों में से कुछ हैं। IFPRI और FAO की रिपोर्ट बताती हैं कि बांग्लादेश ने अपनी कृषि सुधार नीतियों और परिवार नियोजन के जरिए 2004 का कुपोषण का 55.5 फीसद का आंकड़ा 2014 में 36.1 प्रतिशत तक थाम लिया। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं की ज्यादा से ज्यादा उपलब्धता, स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति, पीने का साफ पानी और साफ-सफाई के साथ महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर ध्यान देकर बदतर होते हालातों को बेहतर किया।

वहीं चीन ने भी अपनी ऊंची विकास दर से देश में भुखमरी, कुपोषण और गरीबी पर काबू किया। ब्राजील और इथोपिया ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कृषि में शोध और विकास के सहारे नामुमकिन काम को आसान किया। हालांकि, भारत सरकार ने भी दर्जनों ऐसी योजनाएं बनाई है जो गरीबी, कुपोषण और भुखमरी को खत्म कर सकती हैं जैसे- आईसीडीएस, नेशनल हेल्थ मिशन, पोषण अभियान, नेशनल डीवार्मिंग प्रोग्राम, अनीमिया प्रोग्राम, जनानी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम वगैरह लेकिन जमीनी स्तर पर फिलहाल इनकी कामयाबी दर्ज होती नहीं दिखाई दे रही है।

जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे पर भारत की अन्य देशों से तुलना करना सही नहीं होगा क्योंकि भारत की जनसंख्या और आकार में कई देश समा सकते हैं इसलिए इतनी बड़ी आबादी के लिए किए गए काम सफल होने में ज्यादा वक्त लेते हैं। सिर्फ यही नहीं पोषण की सही जानकारी न होने की वजह से भी अक्सर देखा गया है कि लोग कुपोषित रह जाते हैं। ये बात कुछ हद ठीक भी है सरकार को महज खाने से जुड़ी योजनाओं और कार्यक्रमों के अलावा और तरीकों से भी काम करना पड़ेगा जिसमें सबसे पहली आर्थिक विकास दर को तेज करना होना चाहिए।

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